भहाबायत भें दान भाहात्म्म
Abstract
प्राचीन बायतीम सिंस्कृ नत एविं धभिग्रन्थों भें दान का अत्ममन्त
भहत्त्व भाना गमा है । नन:स्वाथि बाव से औय प्रत्ममुऩकाय की अऩेऺा से
यहहत दान से व्मवि को रौहकक तथा ऩयरौहकक सुख एविं ऩुण्म की
प्रानि होती है । दान का अथि है देने की हिमा हकसीको कु छ अऩिण
कयने की ननष्काभ बावना । धभि के चाय चयणों (सत्मम, दमा, तऩ औय
दान) भें दान को प्रधान भाना गमा है। गीताभें श्रीकृ ष्णने कहा है हक
मऻ, दान औय तऩ भानवजीवन को ऩववत्र कयनेवारे कामि है ।1
याभचरयतभानस – भें तुरसीदास कहते है हक ऩयहहत के सभान कोई
धभि नहीिं है औय दूसयों को कष्ट देने के सभान कोई ऩाऩ नहीिं है । हय
तयह के रगाव औय बाव को छोडने की शरुआत दान औय ऺभा से ही
होती है । तैत्तयीम उऩननषद के अनुसाय दान श्रद्धा से देना चाहहए,
अश्रद्धा से नहीिं देना चाहहए, आनथिक साभर्थमि के अनुसाय देना चाहहए,
बमसे देना चाहहए, रज्जासे देना चाहहए तथा ऩात्र-अऩात्र का वववेक
कयके देना चाहहए ।
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वेद, ऩुयाण, उऩननषदाहद अनेक धभिग्रन्थों भें दान
की भहत्ता का प्रनतऩादन हकमा गमा है । भहाबायत बायतीम साहहत्मम
का ऩञ्चभवेद भाना जाता है । वेदव्मास ने भहाबायत भें दान को
ऩववत्र भानकय अनेक स्थानों ऩय उसकी भहहभा का गुणगान हकमा है ।
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References
१. बगवद्गीता - स्वाभी ब्रह्मस्थाननन्द, याभकृ ष्ण भि,धन्तोर, नागऩुय, ८/२०११
२. तैत्तयीम उऩननषद – गीताप्रेस गोयखऩुय ९/सिं.२०१९
३. भहाबायत (वनऩवि) खण्ड -२, १५/ सिं. २०७२
४. भहाबायत (शाझन्तऩवि) खण्ड – ५,१५/सिं२०७२
५. भहाबायत (अनुशासनऩवि) खण्ड – ६,१५/ सिं. २०७२
६. कणिबायभ – भहाभहहभश्रीभूरकयाभवभिकु रशेखय भहायाजशासनेन प्रकानशतिं वत्रवेंद्रभ
१/ई.१९१२