महाभारत में धर्म, अर्थ काम और मोक्ष
Abstract
भारतीय संस्कृति एवं साहित्यमें मानवजीवन के सर्वांगीण विकास के लिए पुरुषार्थ की अनिवार्यता का स्वीकार किया गया है । ‘पुरुषरथर्यते पुरुषार्थ’ अर्थात पुरुष के लिये जो अर्थपूर्ण एवं अभिष्ट है उसकी प्राप्ति हेतु उद्यम करना ही पुरुषार्थ है । पुरुषार्थों की संख्या चार है – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । इन चारों पुरुषार्थों को प्राप्त करना ही मनुष्यमात्र के जीवन दर्शनका आधार माना गया है । हितोपदेशमें कहा गया है –
धर्मार्थ काममोक्षाणां यस्यै कोऽपि निद्यते ।
अजागलस्तनस्यैव यस्य जन्म सदा वृथा ॥
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References
१. महाभारत (शान्तिपर्व) खण्ड – ५,१५/सं.२०७२
२. महाभारत (वनपर्व) खण्ड -२, १५/ सं. २०७२
३. महाभारत (आदिपर्व, सभापर्व) खण्ड -१, १७/ सं. २०७२
४. महाभारत (आश्वमेधिकपर्व) खण्ड -६,१५/ सं. २०७२
५. विदुरनीति – सत्यवीर शास्त्री प्रकाशक – मनोज पब्लीकेशन्स,
१४, संस्करण – २०१८
६. श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – खण्ड -१, ४५/ सं २०७२