भारतीय नौका निर्माण कला
Abstract
वैदिक काल में लोगो को समुद्र का ज्ञान था। ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों में समुद्र एवं नौकाओं के सन्दर्भ मिलते हैं। ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों में साधारण नौकाओं और सीता से चलने वाली वही नौकाओं के स्पष्ट उल्लेख है। सामान्यतया ऋग्वेद के 'भी' शब्द का जो उल्लेख मिलता है उसका भावार्थ सामान्य नदियों में चलनेवाली छोटी-छोटी नावों से ही प्रतीत होता है। ऋग्वेद में प्रयुक्त 'नी' शब्द का तात्पर्य उन बेड़ो (दास नौकाओ) से है, जो दक्षिण भारतीय समुद्रतटों में चलनेवाली टोना नौकाओं के समान थी। वैदिक साहित्य में नौकाओं से सम्बन्धित मस्तूल और पाल का उल्लेख नहीं मिलता परन्तु इनके उल्लेखों के अभाव में तत्कालीन समाज में प्रचलित नौ परिवहन के सन्दर्भ में सन्देह नहीं व्यक्त किया जा सकता क्योंकि ऋग्वेद की ऋचाओं में लाभ के लिए समुद्र यात्राओ के स्पष्ट उल्लेख है।' (नासत्यौ) अश्विनी के अनुग्रह से शतारिल नाव पर चढकर समुद्रयात्रा करनेवाले तुग्रपुत्र भुण्य के उद्धार का उल्लेख ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों में आया है। वैदिक ऋचाओं में शतारित्राम् नौकाओं के सन्दर्भों से विदित होता है कि इस काल में कुछ नौकाए इतनी बड़ी हुआ करती थी कि उनको खेंचने के लिए सौ-सौ डाड़ो की आवश्यक्ता पडती थी। वाजसनेयी संहिता में भी सौ डाड़ो वाले जहाज़ का उल्लेख है । अथर्ववेद एवं शतपथ ब्राह्मण में भी नौ - परिवहन संचालित कुछ शब्द मिलते है, यथा अरित, नावजा, नौमण्ड और शविन इत्यादि । पाणिनि की अष्टाध्यायी, जातक ग्रन्थों, रामायण एवं महाभारत आदि ग्रन्थों में भी नौ-परिवहन के उल्लेख भरे पड़े हैं।
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References
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