राष्ट्री संगमनी वसूनाम् में प्रयुक्त राष्ट्रभावना
Abstract
वेदो की अनुपम ज्ञानसंपदा के कारण ही भारत अतीत में विश्वगुरु होने का गौरव प्राप्त करने में समर्थ हुआ था।
राष्ट्र से संबंधित शब्दों का प्रयोग वेद में अत्यधिक किया गया है | जैसे साम्राज्य, स्वराज्य, राज्य, महाराज्य आदि | इन सब में राष्ट्र शब्द ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं | राष्ट्र शब्द से आशय उस भूखंड विशेष से हैं जहां के निवासी एक संस्कृति विशेष में आबद्ध होते हैं | एक सुसमृद्ध राष्ट्र के लिए उस का स्वरुप निशित होना आवश्यक है | कोई भी देश एक राष्ट्र तभी हो सकता है जब उसमें देशेतरवासियों को भी आत्मसात करने की शक्ति हो | उनकी अपनी जनसंख्या, भू-भाग, प्रभुसत्ता, सभ्यता, संस्कृति, भाषा, साहित्य, स्वाधीनता और स्वतंत्रता तथा राष्ट्रीय एकता आदि समस्त तत्त्व हों, जिसकी समस्त प्रजा अपने राष्ट्र के प्रति आस्थावान हो | वह चाहे किसी भी धर्म, जाति तथा प्रांत का हो | प्रांतीयता और धर्म संकुचित होते हुए भी राष्ट्र की उन्नति में बाधक नहीं होते हैं क्योंकि राष्ट्रीयभावना राष्ट्र का महत्वपूर्ण आधारतत्व है, जो नागरिकों में प्रेम, सहयोग, धर्म, निष्ठा कर्तव्यपरायणता, सहिष्णुता तथा बंधुत्व आदि गुणों का विकास करता है| तथा धर्म तथा प्रांतीयता गौण हो जाती है | तब राष्ट्र ही सर्वोपरि होता हैं | इन गुणों के विकास से ही राष्ट्र स्वस्थ तथा शक्तिशाली होता है |
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References
ऋग्वेदसंहिता प्रकाशक- सचिव दिल्लीसंस्कृत अकादमी राष्टिय राजधानी क्षेत्रम् दिल्लीसर्वाकारः
यजुर्वेदसंहिता प्रकाशक- सचिव दिल्लीसंस्कृत अकादमी राष्टिय राजधानी क्षेत्रम् दिल्लीसर्वाकारः
अथर्वेदसंहिता प्रकाशक- सचिव दिल्लीसंस्कृत अकादमी राष्टिय राजधानी क्षेत्रम् दिल्लीसर्वाकारः
वैदिककोश प्रकाशक- सचिव दिल्लीसंस्कृत अकादमी राष्टिय राजधानी क्षेत्रम् दिल्लीसर्वाकारः