सदाचारके शिक्षक पुराण
Abstract
आचार: परमोधर्म: सर्वेषामिति निश्चय।
हिनाचारी पवित्रात्मा प्रेत्यचेह विनश्यति ॥
सनातन धर्मके ग्रंथ सर्वोत्तम शिक्षक हैं। उनका अध्येता कभी दुराचारी नहीं सकता। हमारे ग्रंथ सामान्य पुस्तकें नहीं है। वेदोको छोडकर उन सभी ग्रंथोका निर्माण ऋषिमुनियोंने किया है। उनमें अनेकों रहस्य विद्यमान है। यदि वो समाजके सामने प्रकाशित करेगे तो समाजमें व्याप्त दुराचारको हम सदाचारमें परिवर्तित कर सकेंगे।
समाजमें वेदों उपनिषदों ब्राह्मणग्रन्थ ,स्मृतियां और पुराणोंके ज्ञानका अभाव स्पष्ट रूपसे दिखाई दे रहा है। सदाचारोंको छोडकर समाजके पास आज सब कुछ है। विष्णुधर्मोतरपुराणने कहा है, आचार हिंन न पुनन्ति वेदा:। आचारहीनको वेद भी पवित्र नहीं कर सकते।
सभी आर्षग्रंथोसे प्रेरणा लेकर पुराणोंकी रचना हुई है। पुराणोंमें पदपद पर सदाचारकी शिक्षा दी है। जिसमें समाजके लिए सहस्त्र कथाएं भी दी गई है। विष्णुपुराणमें सदाचारका अर्थ बताया गया है कि – साधव: क्षीणदोषास्तु सच्छब्द: साधुवाचक:। तेषामाचरणं यत्तु सदाचारस्स उच्यते ॥
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References
१. मत्स्यमहापुराण – गीताप्रेस गोरखपुर, १०/सं. २०७१
२. गरुडमहापुराणम – चौखंभा कृष्णदास अकादमी, वाराणसी, प्रथम, सन २०१५
३. श्री लिङ्गमहापुराणम – गीताप्रेस गोरखपूर, द्वितीय, सं. २०७१
४. श्रीविष्णुपुराण – गीताप्रेस गोरखपुर, ५६, सं. २०७६
५. हम कितने शाकाहारी है ? ले. प्रीतेश जैन
६. विष्णुधर्मोतरपुराण – क्षेमराज श्रीकृष्णदास, सं. १९६९