राजेन्द्र यादव के उपन्यासों में स्त्री की सामाजिक स्थिति
Keywords:
राजेन्द्र यादव, उपन्यासों, स्त्री की सामाजिक स्थितिAbstract
संपूर्ण हिन्दी साहित्य में उपन्यास ही एक ऐसी विधा है जिसमे मानवीय धारणाओं, सरकारी अनुभूतियों, अस्थाओं, बाकांक्षाओं, सामाजिक मृत्यों के परिवर्तित स्वरूपों, मानव समाज के उत्थान-पतन की संपूर्ण गाथाओं तथा मानव चेतना के नवीन स्वरों का अवशेष इतिहास सम्मा तथा यविध्यपूर्ण समापित है। मानवजीवन के सत्यान्वेषण तथा पथार्थिक स्थितियों की सभ्य रूप से वैज्ञानिक व्याख्या उपन्यास में ही संभव है। उपन्यास का उद्भव और विकास दोनों ही यथार्थ की प्रतीति पर हुआ है। उपन्यास के महत्त्व और उपयोगिता के संदर्भ को विद्वानों ने बहुत महत्व दिया है। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द जी ने "मानचरित्र के रहस्योद्घाटन" को ही उपन्यास का मूल उद्देश्य कहा है। एसे ही श्रेष्ठ उपन्यासकार व आलोचक राजेन्द्र यादव के उपन्यासों की जाँच कर उनके उपन्यासों निर्मित सामाजिक चेतना एवं सामाजिक स्थिति दर्शाई गई है, प्रस्तुत खास कर राजेन्द्र यादव के उपन्यासों में निर्मित महिलाओ कि सामाजिक स्थिति का अध्ययन किया गया है।
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References
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