डॉ. सुरेन्द्र अज्ञात के वैचारिक निबंध जहाँ नारियों की पूजा होती है का विश्लेषणात्मक अध्ययन
Abstract
भारतीय संस्कृति में औरत के रुतबे के बारे में बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बातें की जाती हैं। उनकी स्थिति को सर्वोत्तम बताने हेतु बात यहीं से आरम्भ करते हैं कि 'जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का निवास होता है और जहाँ उनकी पूजा नहीं होती, वहाँ सब क्रियाएँ निष्फल हो जाती हैं। यह कथन किसी और का नहीं, प्रत्युत्त स्वयं मनु का है जो उस द्वारा रचित मनुस्मृति के तीसरे अध्याय का छप्पनवाँ श्लोक है। प्रशंसामई इस श्लोक में भारतीय संस्कृ ति के नारी के बारे में दृष्टिकोण व विचारों को एक स्थान पर ही इकट्ठा कर देते हैं और अपना अन्तिम निर्णय सुना दिया करते हैं कि भारती संस्कृति में नारी हमेशा से ही उच्च दर्जे के व सम्मानित पद की अधिकारिणी रही है। इसी दृष्टिकोण के सम्मुख डॉ. सुरेन्द्र अज्ञात ने, जिनका कि वैचारिक निबंध परम्परा में महत्त्वपूर्ण स्थान है, आलेख लिखा था "जहाँ नारियों की पूजा होती है। उनका यह आलेख दिल्ली से प्रकाशित होने वाली पाक्षिक पत्रिका 'सरिता (दिसम्बर (1). 1972 ) में प्रकाशित हुआ था जिसमें उन्होंने धर्मशास्त्रों के हवाले से सिद्ध करने का प्रयत्न किया था कि हिन्दू नारी की स्थिति - विषयक जो बड़ी बड़ी बाते करते हैं, वास्तविक स्थिति उसके बिल्कुल विपरीत रही है। उनका यह आलेख अब पुस्तकाकार में प्रकाशित उनके अड़सठ निबंधों के संग्रह 'क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिंदू धर्म में उपलब्ध है। इस निबंध में उन्होंने वेदों, यास्काचार्य के निरुक्त, रामायण, महाभारत स्मृतियों, पुराणों, पंचतन्त्र आदि के संदर्भ में, भर्तृहरि शंकाराचार्य, कबीर, तुलसीदास आदि के हवाले से तथा हमारी भाषा व लोक-संस्कृति में नारी-विषयक व्याप्त हीन विचारों को संदर्भ सहित पेश किया है। प्रस्तुत शोध आलेख में उनके इस निबंध का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाएगा।
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References
कश्यप (अनु.), धर्मशास्त्र का इतिहास - प्रथम भाग, पाण्डुरङ वामन काणे, सूचना विभाग, लखनऊ, पृ. 325 पर
उद्धृ
अज्ञात, सुरेन्द्र कुमार शर्मा, क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिंदू धर्म ?, नई दिल्ली: विश्वविजय प्रकाशन, प्रथम संस्करण, (2008), पृ. 50–51, ISBN 978-81-7987–466–0
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