वेदकालीन परिवारभाव

वेदकालीन परिवारभाव

Authors

  • Dr. Madhubhai Hirpara

Abstract

"आदौ वेदमयी दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तयः । '1 वेदमें जो दिव्य या प्रकाशमान ज्ञान है वे सब इस संसार में प्रवृत हो । ऐसा व्यासजीने उचित रूप से कहा है । यह वचन को सार्थक करने के लिए सभी को प्रवृत होना पड़ेगा । ये सब स्रोत के मूल विश्वपरिवारमें निहित है । अथर्ववेद में कहा है की 'अनुव्रतः पितुः पुत्रो मात्रा भवतु संमना: । '2 और 'तत् कृण्मो ब्रह्म वो गृहे । 3 ऐसा कहकर परिवार ऐक्य की भावना प्रदर्शित की गई है । अतः इस लधुशोध प्रपत्र में वैदिक साहित्य के इस भाव को व्यक्त करने का संक्षिप्त प्रयास किया गया है ।

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References

१. ले. पांडुरंगशास्त्री आठवले. व्यासविचार, प्राक्कथन. पृष्ठ 26

२. पं. श्रीरामशर्मा आचार्य. वेदोकी सुनहरी सुक्तिर्यां, श्रद्धांजली प्रकाशन - पृष्ठ 26

३. वही - अथर्ववेद - 3/30/4

४. पं. श्री रामशर्मा आचार्य. वेदों का दिव्य सन्देश, ऋग्वेद संहिता -105/8

५. 5 से 8 तक 'ऋग्वेद' क्रमश: 10/78/6, 2/35/4, 10/85/46, 1/164/40

६. मनुस्मृति अध्याय-३, सस्तु साहित्य प्रकाशन

७. 10 से 15 तके यजुर्वेद पूर्वोक्त-4 1/10, 8/63, 15/59, 35/21, 19/39, 33/77

८. 16 से 25 तक अथर्ववेद, श्लोक 3/30/3, 9/6/1, 14/1/43, 14/1/31, 14/1/22. 14/2/37, 14/2/64, 3/23/2 और 20/129 वही पृष्ठ-381 वही 382-2

९. 26 से 37 तक पूर्वोक्त 2 और 4- अथर्ववेद 3/23/2 तथा 20/129. 3/4/3

१०. संदर्भ - 28 से 37 तक अथर्ववेद क्रमशः 7/36/1 पृ.310, 14/1/52 पृ. 312, 14/ 1/143 .316, 14/12/17 .318, 7/17/1 .322, 14/1/27, .314, 9/6 (3)(7) प.336, 7/30/1 9.338, 7/60/4, पृ.340, 20/92/5 प.342

११. पं. श्रीरामशर्मा आचार्य, वेदों का दिव्य संदेश, पृ. 387 39. वही पृ.38

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Published

10-10-2016

How to Cite

Dr. Madhubhai Hirpara. (2016). वेदकालीन परिवारभाव. Vidhyayana - An International Multidisciplinary Peer-Reviewed E-Journal - ISSN 2454-8596, 2(2). Retrieved from https://vidhyayanaejournal.org/journal/article/view/569
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