अमरकांत के बाल-साहित्य का समाजशास्त्रीय अनुशीलन
Abstract
अमरकांत जी एक बाल साहित्यकार भी हैं। उनका वाल-साहित्य वच्चों की रूचि के अनुसार है। उन्होंने सरल भाषा में बाल साहित्य को निर्मित किया है अतः वच्चे उसे आसानी से समझ पाते हैं। उन्होंने अपने कुछ बाल साहित्य में रंगों और चित्रों का भी प्रयोग किया है जो बच्चों को अपनी और आकर्षित करता है। बालशौरी रेड्डी वाल साहित्य के विषय में कहते हैं- "मेरी दृष्टि में वाल साहित्य वह है जो बच्चों के पढ़ने योग्य हो, रोचक हो, उनकी जिज्ञासा की पूर्ति करनेवाला हो । बच्चों के साहित्य में अनावश्यक वर्णन न हो, उसमें बुनियादी तत्त्वों का चित्रण हो । कथावस्तु में अनावश्यक पेचीदगी न हो। वह सरल, सहज और समझ में आनेवाला हो, सामाजिक दृष्टि से स्वीकृत तथ्यों को प्रतिपादित करनेवाला हो। "१
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References
१. देवसरे, डॉ. हरिकृष्ण (संपा.), बाल साहित्य रचना और समीक्षा, प्रथम संस्करण : १९७९, शकुन प्रकाशन, पृष्ठ संख्या-२७
२. नेउर भाई (मूल प्रति), अमरकांत, पृष्ठ संख्या १
३. वहीं, पृष्ठ संख्या-३
४. एक स्त्री का सफर, अमरकांत, संस्कार १९९६, कृतिकार प्रकाशन, इलाहावाद, पृष्ठ संख्या १०
५. गोपा को नसीहत (मूल प्रति), अमरकांत, पृष्ठ संख्या २
६. वानर सेना, अमरकांत, संस्करण १९९६, कृतिकार प्रकाशन, इलाहावाद, पृष्ठ संख्या-२७
७. वही, पृष्ठ संख्या २६
८. गोपा को नसीहत (मूल प्रति), अमरकांत, पृष्ठ संख्या-४
९. खूँटा में दाल है, अमरकांत, संस्करण १९९१, कृतिकार प्रकाशन, इलाहाबाद, पृष्ठ संख्या-२४